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कविता

एक पुरातन आखेट-कथा

शिरीष कुमार मौर्य


(नए वक्‍़त की एक घटना को याद करते)

 

तुम्‍हारे नीचे पूरी धरती बिछी थी
जिसे तुमने रौंदा
वह सिर्फ स्‍त्री नहीं थी
एक समूचा संसार था फूलों और तितलियों से भरा
रिश्‍तों और संभावनाओं से सजा

जो घुट गई तुम्‍हारे हाथों तले
सिर्फ एक चीख़ नहीं थी आर्त्‍तनाद था समूची सृष्टि का

हर बार जो उघड़ा परत-दर-परत
सिर्फ शरीर नहीं था
इतिहास था शरीर मात्र का

जिसे तुमने छोड़ा
जाते हुए वापस अपने अभियान से
ज़मीन पर
घास के खुले हुए गट्ठर-सा
उसकी ज़ुबान पर तुम्‍हारे थूक का नहीं
उससे उफनती
घृणा का स्‍वाद था

वही स्‍वाद है
अब मेरी भी ज़ुबान पर


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